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परिशिष्ट
जैसे कडुआाशाह, बीजाशाह, और गुलाबशाहादि के मत गृहस्थों के चलाए हुए हैं वैसे ही लौंकामत भी लौंका शाह नामक गृहस्थ का चलाया हुआ है। लौंकाशाद के मत में नामधारी साधु हुए परन्तु उनका गुरु कोई नहीं था और न उन्होंने किसी सद् गुरु के पास जाकर कभी दीक्षा ली थी। शास्त्रकारों का स्पष्ट आदेश है कि दोपस्थापनीय चारित्र, बिना गुरु के हो ही नहीं सकता है । पर लौंकाशाह के मत में जितने पंथ चले वे सब के सब बिना गुरु वेश धारण करके ही गृहस्थों के चलाये हुए हैं। बतौर नमूना के कुछ देखिये ! :
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( १ ) लोकाशाह की मौजूदगी में लौंका शाह वृद्ध और अपंग होने के कारण स्वयं तो दीक्षा ले नहीं सका, किन्तु भाणादि तीन मनुष्यों को बिना गुरु साधु वेश पहिना कर साधु बना दिया, जिनकी प्रवृत्ति आज तक चालू है ।
(२) वि० सं० १५६६ में रूपजीऋषि, उस समय लौंकामत के यति होते हुए भी बिना गुरु साधु का वेश पहिन कर साधु बन गए | देखो ! प्र० प० पृ० १८१
( ३ ) जीवराजजी स्वामी वि० सं० १६०८ में लौंकागच्छोय यतियों से निकल कर बिना किसी गुरु के पास, दीक्षा लिए ही आप स्वयं ही साधु बन गए थे । प्रभु० वी० प० पृ० १८१ ( ४ ) धर्मसिंहजी ने वि० सं० १६८५ में अपने गुरु शिवजी
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