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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
३१० प्रकार यह बता दिया है कि श्रीमान् वा० मो० शाह को न तो कोई इतिहास का ज्ञान था और न सामाजिक ज्ञान भी था। केवल अपनी हठधर्मी तथा मिथ्यामतवादिता के मोह में फँस,
आठकोटि के उपासक हो ने से आठ कोटि समुदाय का जरूर पक्ष किया है, और मन्दिर मूर्तियों तथा जैनाचार्यों के प्रति अपने जन्म जन्मान्तरों की चिर सञ्चित पक्षपात पूर्ण मनोवृत्ति का परिचय देने को काले कलेजे से भयंकर जहरीला विष वमन कर अपने दहजते दिल को इस नोंध द्वारा चिरशांति कराई है। किन्तु दुःख है कि सांप्रत का जमाना केवल मिथ्या हठवादिता का न हो कर सत्याऽन्वेषण का है अत:ऐसी निकम्मी और अकिंचन पुस्तकों की सभ्य समाज में तो कोई कीमत ही नहीं हो सकती । हाँ! जो शाह के सदृश क्षुद्र विचार वाले जीव हैं वे इसे जरूर कलेजे से लगा सकते हैं।
शेष में मैं मेरे इतिहास लेखक सज्जनों की सेवा में यह निवेदन करता हुआ कि "आप लेख लिखने के पूर्व उस लेख की सहायक सामग्री को पूर्णतया अपने पास जुटा कर कोई लेख लिखें तो विश्वास है विद्वद्वर्ग में वह विशेष आदरणीय हो सकता है" बस मैं मेरे इस लेख को यहाँ हो समाप्त करता हूँ।
ॐ शान्तिः ३
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