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पंजाब की पटावलि के अनुसार ही रखने कि इन २७ नामों में तो किसी को न तो बोलने को स्थान मिलता और न स्थानकवासियों को मुँह छिपा के लाजबाब ही होना पड़ता परंतु इतनी बुद्वि लावे कहाँ से जो जिसके दिल में आया वही घसीट मारा क्या किसी स्थानकवासी भाइयों में यह ताकत है कि पंजाब या कोटा की पावलियों में लिखे हुए दश पाट के अलावा किसी प्राचार्यों के एक भी विश्वासनीय प्रमाण जनता के सामने रख सके ?
अब आगे चल कर यति ज्ञानजी की ओर जरा दृष्टि डाल कर देखिये । पंजाब की पटावलीकार यति ज्ञानजी को अपने पूर्वज होने का उल्लेख किया है श्रीसंतपालजी और वा. मो० शाह ४५ दीक्षा के उम्मेदवारों को यतिज्ञानजी के पास दीक्षा दिग्वाई है और पंजाब को पटावली यतिज्ञानजी के पूर्व उनके गुरु परम्पराभी दी उनको हम आगे चल कर बतलावेंगे।
वास्तव में यतिज्ञानजो स्थानकवासियों ने ही लिखा है पर श्रापका नाम आचार्य ज्ञानसागरसूरि हैं और आप वृद्धपोसाल के श्रादि आचार्य विजयचन्द्र सूरि की परम्परा में हैं । विजयचन्द्र सूरि प्रसिद्ध तपागच्छ आचार्य जगञ्चन्द्रसूरि 'कि जिन्हों को मेवाड़ के महाराणा ने तपाविरूद अर्पण किया था' गुरु भाई थे। अब हम यतिज्ञानजी के पूर्वजों की नामावली तथा स्वामि मणिलालजी द्वारा प्रभुवीर पटावलि की पटावलि, और पंजाब की पटावलि उद्धृत कर पाठकों का ध्यान निर्णयकी ओर आकर्षित करते हैं।
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