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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
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लघुपोसालिया विजय पंजाब के स्थानकवासियों स्था० साधु मणिलालजी चन्द्रसूरि की पटावलि की पटावलि
की पटावलि ४५-विजयचन्द्रसरि ४६-हरिसेन ३४-वर्द्धनाचार्य ४५-क्षमाकीर्तिसूरि ४७-कुशलदस
। ३५-भराचार्य ४७-हेमकलश सूरि ४८-जीवनर्षि ३६-सुदनाचार्य ५८-यशोभद्र सूरि । ४६-जयसेन ३७-सुहस्ती ४९-रत्नाकर सूरि ५०-विजयर्षि | ३८-परदनाचार्य ५० रन प्रभसूरि ५१-देवर्षि ३९-सुबुद्धि ५१-मुनि शेखर सूरि ५२-सूरसेनजी ४०--शिवदत्ताचार्य ५२-धर्मदेवसूरि ५३-महासेनजी ४१-वरदताचार्य ५३-ज्ञानचन्द्र सूरि । ५४-जयराजजी ४२-जयदत्ताचार्य ५४-अभयसिंह सूरि ५५-गजसेनजी
४३-जयदेवाचार्य
४४-जयघोषाचार्य ५५-हेमचन्द्र सूरि ५६-मिश्रसेनजी
४५-वीरचक्रधर ५६.-जयतिलकसूरि ५७-विजयसिंहजी१४० १६-स्वतिसेनाचार्य ५७ -रमसिंह सूरि ५८ शिवराजजी १४२७, ७-श्रीबंताचार्य ५८-उदयचल सुरि ५९-लालजीमल १४७१ ४८-समतिमाचार्य ५९ -ज्ञानसागर सरि ६० ज्ञानजी यति१५०१ (लौकाशाह के गुरु) (ज्ञानजी यति) ऐ० नो• पृष्ठ १६३ । प्रभु वी० पृ० १५६
बुद्धिमान् ! स्वयं समझ सकते हैं कि यतिज्ञानजी की परम्परा मिलाने के लिए पंजाब की पटावलि किस प्रकार की
ॐ श्राकल्प भाष्य टीका के कर्ता+वि. सं. १३७१ श्री समराशाह ने शत्रुन्जय का पन्द्रहवा उद्धार के समय आप वहाँ प्रतिष्ठा में शामिल थे। और आपकी कृतियों में रखाकर पचीसी बहुत प्रसिद्ध है * जिन तिलक सूरि के पटधर माणक्य सूरि हुए आपके विषय मुनि सुन्दरसूरी रचित गुरावली के श्लोक १४० से १४४ में वर्णन है।
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