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पंजाब की पटावलि (१) लौंकाशाह को वे गृहस्थ मानते हैं और गृहस्थ को अपना
धर्म संस्थापक गुरु मानना वे पसन्द नहीं करते हों। (२) यदि लौकाशाह को दूसरों की तरह ये भी अपना गुरु
मान लें तो एक जबर्दस्त आपत्ति आ खड़ी होती है। क्योंकि या तो लौकाशाह के पूर्व जो श्राचार्य हुए हैं उन सब को अपना धर्माचार्य मानना पड़े कि जिन्होंने अनेकों मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठाएँ कराई। या २००० वर्षों तक भगवान के शासन का विच्छेद मानना पड़े इन आपदाओं को अपने पर से टालने के लिये ही इन लोगों ने यह कल्पित नामावली तैयार कर अपनी पटावली सीधी महावीर से मिलादी है । विद्वान् इसे माने या न माने परन्तु पजाबी स्थानकवासियों का तो इस पटावली से लौंकाशाह गृहस्थ को धर्म गुरु मानने का अपयश टल गया और न लौंकाशाह के पूर्ववर्ती मूर्ति पूजक आचार्यों को अपना उपदेष्टा मानना पड़ा, तथा शेष में २००० वर्षों तक शासन विच्छेद का भय भी जाता रहा ।।
किन्तु स्थानकवासी साधु मणिलालजी तो इसमें भी अनेक झंझटें देखते हैं, क्योंकि पञ्जाब की पटावली के २७ पाट और श्रीनन्दीसूत्र के २७ पाट मिलते नहीं हैं। नन्दीसूत्र के २७ पाटों में जो नाम हैं उनमें से कई नाम पंजाब की पटावली में नहीं हैं
और जो पजाब की पटावली में २७ पाट हैं वे कई नन्दीसूत्र में नहीं हैं। दूसरा देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण और ज्ञानजीयति के बीचमें जितने आचार्य पंजाब वालों ने बताये हैं उनके अस्तित्व का प्रमाण भी इनसे उपलब्ध नहीं होता। ऐसी दशा में यह
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