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अहमदाबाद का फैसला
यह तो हुई शाह को मिली हकीकत की बात, अब शाह खुद इस विषय में क्या कहता है जरा उसे भी सुन लीजिये:
" दोनों पक्ष अपनी जीत और दूसरे की हार प्रकट करते हैं परन्तु किसी प्रकार के लिखित प्रमाण के अभाव में मैं किसी तरह की टीका करने को प्रसन्न नहीं हूं |"
ऐ० न० पृ० १३० ।
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इस प्रकार पूर्वोक्त शास्त्रार्थ के बारे में श्रीयुत शाह का "फैसला " एक अजब ढंग ही दिखाता है । क्योंकि शाह खुद लिखते हैं कि "इस विषय में लिखित प्रमाण का नितान्त अभाव है" तो फिर ऊपर लिखी हकीकत क्या शाह के " गप्प पुराण" का ही एक अध्याय है ? आगे उस फैसले से पूर्णतया परिचित होने को शाह फिर जेठमलजी के "समकितसार नामक" प्रन्थ को पढ़ने की सलाह देते हैं परन्तु आश्चर्य और दुःख इस बात का है कि समकित सार तो जेठमलजी ने वि० सं० १८६५ में बनाया था और शास्त्रार्थ का फैसला हुआ है वि० सं १८७८ की पौष सुदि १३ को । कहिये क्या खूब रही ! १३ वर्ष भविष्य की बात जेठमलजी * अपने ग्रन्थ में क्यों कर लिख गए, क्या जेठमलजी को भी शाह के सदृश भविष्य का विभंग ज्ञान था ? अथवा आपकी लेखन शैली की सत्यता, प्रभु साक्षी से को हुई प्रतिज्ञा की प्रामाणिकता और नोंध सरीखे ऐतिहासिक ग्रन्थ की ऐतिहासिकता क्या यहीं तो समाप्त नहीं हो जाती है ? वाह रे ? सत्य-दयापालकों ! इसी बूते पर, ऐसी निरर्गल झूठी बातें लिख
* सं० १८७८ पहिले ही स्वामि जेठमलजी का देहान्त हो गया था ।
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