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वीरजी बोहरा का नबाब पर कागद
खैर ! लवजी एक वार खंभात गए और वहाँ अपने गुरु की निन्दा करने लगे। यह बात लवजीके नाना वीरजी बोहरा को सूरत में मालूम हुई, उन्होंने खंभात के नवाब पर एक पत्र लिखा, जिसकी नकल स्वामी मणिलालजी ने अपनी प्रभुवीर पटावली के पृष्ट २०५ में दी है उसमें से कुछ वाक्य यहाँ भी उद्धत किये जाते हैं।
"शु यतिवयं नो अपमान ? शु गुरुले प्रापेला ज्ञान नो अजीरण ? जे गुरु तेने ज्ञान प्रापी भणाव्यो तेनो उपकार न मानतां तेना थीविरुद्ध वर्ती नवो मत कहाड़वा लवी तैयार थया x x x गुरु ने उतारी पड़वा खोटो उपदेश
आपेछ माटे त्यां आवे तो लवजी यति ने ग्राम थी कहाड़ी मुंकजो x x x
प्रभुवीर पटावली पृ० २०५. शाह और स्वामीजी ने अपनी अपनी पुस्तकों में लवजी धर्मसिंहजी को गुरु की आज्ञा से क्रिया उद्धार करने की एक मनगढन्त कल्पना की है। पर ऊपर के वाक्यों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि इन दोनों व्यक्तियों को अयोग्य समझ कर ही इनके गुरुत्रों ने इन्हें गच्छ बाहिर किया था, तभी तो अपने पूज्य गुरुओं को ये निन्दा करते थे, और इसीसे लवजी के नाना ने नवाब के नाम पत्र लिखा था । और यहाँ तक लिखा दिया कि यदि लवजी ग्राम में श्रावे तो भी उन्हें बाहिर निकाल देना, अब उनके प्रचार की तो बात ही क्या रही ? और इससे अधिक यति रूपधारी लवजी के विरूद्ध वे क्या लिख सकते थे। .
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