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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
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उपाश्रय के, और सात सौ सात सौ,प्रत्येक छोटे उन्नीस उपाश्रय के मिलाकर १३००० घर ये कुल २० हजार घरोंके एकलाख मनुष्य अहमदाबाद में लौंकों के नहीं पर केवल हूँढिया मत के शिवजी के समय में होना शाह के अनुमान से सिद्ध होता है, तब संभव है इतने विशाल शहर में उस समय कुछ न कुछ घर तो लौकामत के और जैन मूर्तिपूजकों के भी जरूर ही होंगे, क्योंकि उस समय का इतिहास डके की चोट यह बता रहा है, कि वि० सं० १६९४ में वहाँके श्रीमान् नगरसेठ ने नौ लाख रु०व्यय कर वहाँ एक विशाल जैन मन्दिर बनाया था । खैर ! मूर्तिपूजकों के घर हों वा न हो, इससे अपने को कोई प्रयोजन नहीं, अपने को तो मर्ति नहीं मानने वालों का ही इतिहास अभी देखना है। इसलिए प्रस्तुत प्रकरण में उसी का खुलासा करना है कि शिवजी के समय वि० सं० १७२५ तक एकनगर में जिस किसी समुदाय के ७००० या २०००० घर हों और २० उपाभय हों और प्रागजी के समय वि० सं० १८३० में अर्थात् केवल १०० वर्षों बाद उस शहर में खास प्रागजी को रहने को न तो एक उपाश्रय ही मिले और न उनके मतावलंबी सौ पचास भावक ही मिले । और उन्हें एक साधारण गृहस्थ के यहाँ ठहरना पड़े, क्या यह कम आश्चर्य की बात है ? सुज्ञ पाठक, शाह की इस कल्पना की सत्यता पर स्वयं विचार कर सकते है कि इतने विशाल उपाश्रय का इतने क्षीण समय में ही मष्ट हो जाना तथा इतनी विशाल जन संख्या का उस समय अपने धर्म को मानने पर भी अल्प संख्यक मूर्तिपूजकों द्वारा जाति बहिष्कृत किया जाना, व एक शताब्दी में अलोप
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