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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
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ने भी अपनी 'प्रभूवीर पटावली' पृष्ट १८१ में पूज्य मेघजो स्वामी का आचार्य विजयहीरसूरि के पास जाना लिखा है, पर ५०० साधुओं के साथ, लिखनेमें आपकी कलम रुक गई थी। आपने केवल २७ साधुओं के साथ ही जाना लिखा है । संभव है कि उस समय पूज्य मेघजी के साथ २७ साधु ही हों ? शेष कहीं
आस पास में हों, जिन्हें मेघजी बाद में बुलाते गये और अपने शिष्य बनाते गये हों और फिर वे संख्या में ५०० हो गये हों तो आश्चर्य की बात नहीं हैं फिर भी शाहने समप्र संख्या एक साथही लिख दी यह भी अच्छा ही किया। क्योंकि इससे सर्व साधारण स्वयमेव लौंकामत की सत्यता एवं शिथिलता को समझ सकते हैं। ___ संभव है शाह वाडीलाल ने कटुसत्य लिख दिया हो परन्तु स्वामि मणिलालजी साधु होने से अपने मत की हलकी लगने के कारण संकुचितरख शाह वाडोलालके सत्यको दबाना चाहा हो परन्तु वास्तव में दोनोंका आश्रय एक ही है । श्रीमणिलालजी ने २७ साधु लिखा है तब आपको ओर ओर साधु ओं को अलग अलग लिखने की आवश्यकता रही पर वाड़ीलाल ने अलग२ का झगड़ा नहीं रख एक साथ में ५०० साधु लिख दिया फिर भी आपने संकीर्णता धारण करली क्योंकि आचार्यश्री आनन्दविमल सूरि के पास लौं कामत के कुल ७८ साधु और प्राचार्य हेमविमलसूरीके पास पूज्यश्री पालजी आदि ४७ साधुओं ने लोंकामत का त्यागकर जैनदीक्षा ग्रहण की थी। इसलिये हो कहा जाता है कि यह भीषण समय लोकाशाहके हवाई किल्ले को तोड़ने वाला था,अतः एक ओर तो बड़ेबड़े पूज्य लौंकामतका त्याग करनेलगे और दूसरी
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