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ऐति. नोंध की ऐतिहासिकता
तो दूसरों को विपत्ति में देख कर ही खुश होते हैं अर्थात् दूसरों की सम्पन्नाऽवस्था दुष्टों से नहीं देखी जाती। जैसे हाथी की विशालता को देख श्वान केवल उसे नहीं सह सकने के कारण उसके पीछे भौंकता रह जाता है, तद्वत् संकुचित-विचार वृत्ति वाला शाह ने समृद्ध जैनधर्म को देख येन केन प्रकारेण उसके पृष्ट पोषकों को घुरा भला कहने ही में अपने जीवन की सार्थकता समझो है । शाह के माने हुए ३२ सूत्रों में जब श्रावक के सामायिक, पोसह प्रतिक्रमण, प्रात्याख्यान, दान और साधु दीक्षादिक धार्मिक क्रियाओं का विस्तृत विधि-विधान नहीं है तब जैनधर्म के लिए उन ब्राह्मणों ने प्राचीन शास्त्रों के आधार पर धार्मिक क्रियाएँ तो क्या पर गृहस्थों के सोलह संस्कारों तक के विधान रच डाले कि जैनियों को किसी भी विधान के लिय जैनेतरों का मुँह नहीं ताकना पड़े । बस ! इसी दद के कारण शाह के पेट में यह द्वेष का वायु गोला उठ खड़ा हुआ है और अपनी नौंध में उटपटाँग बातें लिख नाहक कागज काले किये हैं। परन्तु यदि विचार से देखा जाय, तब तो यह शाह की निरी अज्ञताही सिद्ध होतो है । आज संसार भर में भी शायद ही कोई ऐसा मत या पंथ हो ? जो संस्कृत साहित्यका विरोध करता हो, परन्तु केवल शाह इस कल्पना के लिए अपवाद रूप खड़े हैं।
सच देखा जाय तो दुग्ध पाक और मिष्टान्न किस को रुचिकर और पथ्यकर नहीं होता है ? पर संग्रहणी वाले को तो प्रत्यक्ष विष का काम देता है । यही हालत हमारे श्रीमान् शाह महाशय की है।
पुनः शाह अपनी ऐ० नों० के पृष्ट १० पर लिखते
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