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ऐति० नोंध की ऐतिहासिकता
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भोले नहीं हैं कि अपने पूर्वजों ने जिन व्यक्तियों को गच्छ से बहिष्कृत किया श्राज उन्हीं की सन्तान को वे अपने से उच्चस्थिति का मान उनसे विनयता का बर्ताव करें तथा शास्त्र सम्मत मूर्तिपूजा को छोड़ शास्त्र विरुद्ध मुँहपत्ती को दिनभर मुँह पर बाँध एक नयी आपत्ति को मोल लें ?
जैसे शाह ने औरों की खबर ली है वैसे ही शाह की क्रूर दृष्टि से वे ब्राह्मण भी नहीं बचे हैं जिन्होंने जैनधर्म की दीक्षा ले श्राचार्यपद को सुशोभित किया था और साहित्य सेवा कर जैन साहित्य के भण्डार को भरा दियाथा। उनके विषय में शाह अपनी ऐनों के पृष्ट ३३ पर अपना रोष इस प्रकार प्रकट करते हैं कि:
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X x ब्राह्मणों में वैयाकरणी, नैयायिकादि हजारों मारे २ फिरते थे, उनको कोई नहीं पूछता था । जब उन्होंने देखा कि जैनियों में खूब चलती है तो उन्होंने जैनधर्म का पक्ष किया, और इस मत के लिए सैकड़ों पद्यमय विधिग्रन्थ बना डाले । जैन उनकी विद्वत्ता को पवित्रता समझने लगे, और कई एक जान बूझ कर भूल में पड़े। क्योंकि उन्होंने जैसे हो तैसे मत बढाने का इरादा रक्खा था xxx यह बात ठीक है । जैनधर्म में खास कर भगवान् महावीर के शासन समुदाय में ब्राह्मणों ने विशेष लाभ उठाया । जिसमें भगवान् इद्रभूति ( गौतम स्वामी ) आदि ४४०० ब्राह्मण, शय्य भवभट्ट ब्राह्मण, यशोभद्र ब्राह्मण, भद्रबाहु ब्राह्मण, आर्य सुह स्वी ब्राह्मण, सिद्धसेनदिवाकर ब्राह्मण, हरिभद्रब्राह्मण, शोभ न
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