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ऐति० नोंध की ऐतिहासिकता
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"x x x इस भयङ्कर समय में दुनियाँ स्वयं ही दयाजनक स्थिति में पापड़ी और भूखों मरने लगी फिर विचारी दान कहाँ से करती ।" इत्यादि
और आगे चलकर फिर लिखते हैं " x x भगवान् की मूर्ति के सामने अन्नादि रखने से, द्रव्य आदि भेंट करने से, धर्म होता है, ऐसा उपदेश दिय" ऐ० नो० पृष्ट १९ __ शाह ! एक कहावत प्रसिद्ध है कि पीलिये के रोगी को सारा संसार ही पीलापन लिए नजर आता है, तद्वत् विचार शून्य बुद्धि वाले को भी, सारा संसार, विचार शून्य, नजर आता है परन्तु यह केवल नादानी है, पीलिये के लिए संसार भले ही पीला हो परन्तु निरोगों के लिए वह पीला न होकर अपने खास रूप में ही है, वैसे ही आप विचार शून्य हैं अतः परस्पर विरोधोक्ति पूर्ण बातें आपको भले ही रुचिकर जान पड़ें किंतु जिसने जरा मी विचार बुद्धि सीखी है उसके लिए आपकी ये भ्रान्ति पूर्ण पातें थोथी ही हैं । आप थोड़ी देर के लिये भी पक्षपात प्रवृति का घश्मा उतार कर यदि अपने खुद के शब्दों पर ही विचार करते तो यह स्पष्ट होजाता कि जब दुनियाँ दुष्काल के कारण भूखों मरती हुई साधुओं को भी दान देने में लाचार थी तब, उस समय में मूर्ति के सामने अन्नादि भेट करने की यह नई रीति निकालने का साधू उपदेश देते तो दुनियाँ उसे कैसे स्वीकार कर सकती थी यदि नहीं तो फिर शाह का कथन शाह के शब्दों से ही मिथ्या सिद्ध होजाता है। वस्तुतः भगवत् मूर्ति का अष्ट द्रव्य से पूजा करने का विधान कोई नया नहीं किंतु स्वयं तीर्थङ्करों का कहा
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