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[२४५ ] हालांकि मैंने नोंध को पूरी की पूरी समालोचना इस पुस्तक में नहीं की है, और क्षीण कलेवर पुस्तक में ऐसा होना भी असंभव है किन्तु फिर भी जो खास २ बातें थी उनका सप्रमाण सविस्तर से निराकरण किया है । यदि स्थानकवासी भाई भी इसे निष्पक्षपात बुद्धि से विचारेंगे और आद्योपान्त पढ़ेंगे तो वास्तविक सत्य का निर्णय स्वयमेव हो जायगा। तथा यह भी जाहिर हो जायगा कि वा० मो० शाह ने जैनों पर या लौकागच्छीय यति श्रीपूज्यों पर जो मिथ्याऽऽक्षेप किये हैं वे प्रकृत में जैन धर्म को ही हानि पहुँचानेवाले हैं। शाह लिखित पुस्तक से जैन समाज में पारस्परिक वैमनस्य और राग द्वेष की वृद्धि के अलावा और कोई लाभ नहीं है। ____ मैंने शाह के आक्षेपों का निराकरण, शाह की भाँति केवल कपोल कल्पित बातों पर ही नहीं किया है किन्तु इतिहास के प्रमाणों और खास कर लौकागच्छीय यतियों के प्रमाणों से किया है। आशा है पाठक गण ! इस लघु पुस्तक को श्राद्योपान्त पढ़ कर अवश्यमेव सारासार का विचार कर लाभ उठावेंगे, यहो शुभ भावना है।
ता० २१.८.३६ । पाली (मारवाड़)
"ज्ञानसुन्दर"
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