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पूज्यपाद गणिवर बुद्धिविजयजी महाराज
( स्था० पंजाबी साधु बूंटेरायजी)
PANA
आप पंजाब की वीर भूमि में जन्म लेकर जननी जन्म भूमि का उद्धार करने के लिए वि. सं. १९०३ में साधुमार्गी पन्थ को त्याग कर अर्थात् मुंहपत्ती का डोरा तोड़ । पंजाब में भूली भटको जनता को सद् उपदेश देकर पुनः है
जैन-धर्म के सत्य पथ पर लाने लगे और बाद में गुजरात में जाकर पूज्य गणि श्रीमान मणिविजयजी के पास जैन दीक्षा स्वीकार की,और मूर्तिभंजकों की मायालाल को दूर कर धर्म में खूब प्रचार किया। आपकी परम्परा में आज करीबन ४५० साधु और सैकड़ों साध्विएं विद्यमान हैं। यों तो आपके पहिले भी पूज्य मेघजी के बाद कई स्था० साधुओं ने मुँहपत्ती का डोरातोड़ जैन-धर्म की दीक्षा ली थी, पर आपने विशेष नामवरी इस कारण प्राप्त की कि श्राप पंजाब जैसे साधुमागियों के साम्राज्य में प्रायः लुप्त हुए मूर्तिपूजक धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करने में समर्थ हुए ।
'कोटिशः वन्दन हो ऐ
ommama
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