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और विचार तशय दुःख की मूर्तिय
[ २४२ ] सच्ची नहीं होती" इनका यह लक्ष्य समग्र इतिहासों को और नहीं किन्तु मिथ्यात्व सेवियों के लिखे कल्पित इतिहासों पर ही है।
और ऐसे इतिहास तथा इतिहास लेखकों में हमारे जैन समाज के चिर परिचित वाडीलाल मोतीलाल शाह तथा तल्लिखित ऐतिहासिक नोंध का नाम विशेष उल्लेखनीय है। आपने वि० सं० १९६५ में यह ऐतिहासिक नोंध गुजराती भाषा में लिख प्रकाशित करवाई थी। इसके बाह्य आकार प्रकार (टाईटिल पेज) को देख लोगों को यह आशा हुई थी कि इसमें जरूर ज्ञातव्य ऐतिहासिक घटनाओं को उल्लेख होगा, परन्तु जब उसे उठाकर उन्होंने आद्योपान्त पढ़ा और विचार किया तो सारी आशाओं पर पानी फिर गया और चित्त में अतिशय दुःख हुआ, क्योंकि शाह ने ऐतिहासिक नोंध के नाम पर जैन तीर्थक्करों की मूर्तियों की, जैनाचार्यों और ब्राह्मणों की केवल भर पेट निन्दा नहीं, पर साथ में ही जैनाऽऽगम, जैनसाधु, जैनमंदिर-मूर्तियों और सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, दान एवं देवपूजा का विरोध करने वालों की अतिशय प्रशंसा की है। विशेषता यह है कि ऐतिहासिक नोंध लिखते समय शाह के हृदय में ही नहीं अपितु उनकी नस नस में साम्प्रदायिकता के विष की व्यापकता थी, यह बात इस पुस्तक के पढ़ने से स्वयमेव परिस्फूट हो जाती है। शाह के लिखे प्रत्येक वाक्य से विष वमन करती हुई यह पुस्तक अपने पृष्ट १३५ पर से बताती है कि “लवजी ऋषि के एक साधु को अपने मन्दिर में ले जाकर यतियों ने उसे तलवार से काट वहीं मन्दिर में गाड़ दिया। x x x यतियों की खटपट से सोमजी को एक रंगरेज ने विष देकर उनका जीव ले
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