________________
भूमिका
सं
सार भर के साहित्य में इतिहास का आसन सर्वोत्तम एवं सर्वोच्च है । क्योंकि इतिहास में पक्षपात का अभाव और प्रमाणों की प्रबलता रहती है । सभ्य समाज का इतिहास पर पूर्ण प्रेम और सच्चा विश्वास रहता है तथा वे इतिहास-लेखक और इतिहास-पुस्तकों को बड़े आदर से देखते है ।
परन्तु जब " विप मध्यमृतं क्वचित् भवेत् श्रमृतं वा विषं भवेत् ” इस सिद्धान्तनुसार संसार की सत्यता का प्रदर्शक इतिहास भी, अपने पक्षपाती लेखकों की बदौलत सत्यता का गला घोंट असत्यता के समर्थन में उतारू हो जाता है तब महान् दुःख होता है । यद्यपि यह बीसवीं सदी का समय सत्य सत्यान्वेषण का कहा जाता है, तदपि ऐसे लेखकों का अब भी सर्वथा अभाव नहीं है जो, अपने कलेजे के कलुषित उद्गार निकाल, निराधार मनः कल्पित बातें बना इतिहास के ऐतिहासिकता की हत्या करने में ही अपने जीवन का साफल्य समझते हैं । संभव है वे इसमें अपनी कपट-कुशलता एवं वाक् शूरता भी समझते होंगे, परन्तु सत्यता की शोध करने वाला सभ्य समाज तो उन्हें निरा श्रज्ञ ही समझता है और उन्हें ऐसे २ निन्द्य लेखकों की कल्पित कथाएँ पढ़ कर हठात् कहना पड़ता है कि "उपन्यास में नामों और तिथियों के अतिरिक्त और सब बातें सच्ची होती हैं और इतिहास में नामों तथा तिथियों के अतिरिक्त और कोई बात
१६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org