________________
ennnnnnnnnnnnnnn
इस ग्रंथ के लेखक के गुरुवर्य
परम योगीराज मुनि श्री रत्नविजयजी महाराज
encies
आप कच्छ भूमि मांडवी में ओसवाल वंशी शाह कर्मचन्द की भार्या कमला देवीकी कुक्षि से जन्मे थे।
आपका नाम पहिले रत्नचन्द था। आपनी दश वर्ष की किशोर वय में हो स्थानकवासी समुदाय में अपने पिता के साथ ४ दीक्षित हुए थे। बाद में १८ वर्ष तक निरन्तर प्राकृत १ है और संस्कृत का गहरा अभ्यास कर जैन शास्त्रों का
अध्ययन किया तो आपको मूर्ति अपूजकों का मत कृत्रिम मालूम हुश्रा। फिरतो क्या देरी थी। शास्त्र विशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी के पास पुनः जैन दीक्षा स्वीकार करली । आपश्री ने गिरनार और आबू के पहाड़ों 8 में रह कर योग साधना की थी। आपके ही कर कमलों"
से इस ग्रंथ के लेखक की दीक्षा हुई है। अतएव इन र योगीराज के चरण कमलों में कोटि वन्दन हो ।
APNNNN
eemararmendronenewawwe
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org