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आचार्य श्री अजितसागर सूरिजी
( स्था० साधु अमर्षिजी )
आप श्री काठियावाड़ स्थानकमार्गी समुदाय के एक श्रगण्य साधु थे पर जब जैनागमों का बारीकी से अध्ययन किया तो आप जान गये कि यह स्थानकमार्गी मत एवं साधुमार्गी मत कल्पित खड़े किए हुए हैं और जैनधर्म से विरुद्ध आचरण और उपदेश से ये लोग जैन समाज को अधोगति में लेजा रहे हैं, फिरतो देरी ही क्या थी आपने शिष्यों के साथ अध्यात्मयोगी और शान्तमूर्ति आचार्य श्री बुद्धिसागर सूरि के चरण कमलों में आकर भगवती जैनदीक्षा को स्वीकार कर जैन-धर्म का प्रचार करने में खूब प्रयत्न किया | आपके परम्परा में आज एक श्राचार्य बहुत से साधु और कई एक साध्विएँ भूमण्डल पर विहार कर रहे हैं।
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