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महा प्रभाविक श्राचार्यश्री श्रानन्दविमल सूरीश्वरजी और
लौंकामत के साधु
"मेवात देशे च वीजामाती प्रभृतीन मोख्या दौ X X X लुङ्कादीन् प्रतिबोध्य सम्यक्त्व बीज मुप्तं सदनेकधा वृद्धि मुषागत मद्याऽपि प्रतीतं" 'पट्टावली समुच्चय पृष्ट ७० ' मरुधरादि प्रान्तों में पानी के अभाव के कारण कई साधुओं की अकाल मृत्यु होने से श्राचार्य सोमप्रभसूरि ने साधुत्रों का विहार ही बन्द करवा दिया, इस कारण उन प्रान्तों में लौंकादिसाधुओं को अपना धर्म प्रचार करने की एक सुन्दर सुविधा मिल गई पर आचार्य श्रानन्दविमल सरि महाप्रभाविक उम्र विहारी कठोर तपस्वी और शास्त्रों के मर्मज्ञ होने से उन्होंने भू भ्रमण कर लौकामत के अनेक साधु और गृहस्थों को सन्मार्ग पर लाकर अपने शिष्य बनाये | आपके शासन में महोपाध्याय विद्यासागर गणि जो छठ तप का पारणा करते थे, और स्थूलिभद्र के सहश ब्रह्मचारी थे, उन्होंने मेवाड़ मारवाड़ आदि प्रान्तों में विहार कर अन्य मतों के सदृश लौंकामत वालों को भी सम्यक्त्व व्रत और प्रव्रज्या दे जैन धर्म में दीक्षित किया, जिनकी कुल संख्या ७८ बतलाई जाती है ।
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