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उपपातिकनई राजप्रश्रेणि, जीवाभिगम सुत्त मन्झेणि, अष्टपगारी पूजा खरी, सूरियाम देविइ तिहां करी. श्री आवश्यक बोलिउं सही, नाम ठवण द्रव्य भाव जि कही, चिह्न भेदे बोल्या जिनराज, कुत्सित मती न मानई आज. ११ अष्टापद कुणि दीठउ कहई, नंदीसर वर नवि सांसहई, मेरु चूलां जे जिनि प्रासाद, ते उथापई करई कुवाद. भुवनाधिप व्यंतर माहि जेउ, देवलोकि जोतिष बिहु लेउ, जिणहर पडिमा सास बहू ते मतवाले लोपिडं सहु. समवसरण जे समई प्रसिद्ध, तेह तणउ ए करई नषिद्ध, पूजा द्रव्य भाव बिहुं तणा, ठामि ठामि अक्षर छड़ घणा. १४ एक वचन तीर्थंकर तणुं, जम्मा लिई उथापिडं घणुं, तीं कीधई बहू काल जि रलिउ, एहू मत तेह नई जइ मिलिउ १५ अर्थ प्ररूप श्री अरिहंत, सूत्र रचई गणधर गुणवंत, चऊद अनई दश पूर्वधार, सूत्र रचई बिन्हइ सुविचार. १६ प्रत्येकबुद्ध विरचई ते सही, एह बात जिन आगमि कही, सूत्र न मानई ते कुहु किस्या, आराधकनई मनि किम त्रस्या ११७ बि मारग श्री जिनवरि कहिया, भव्य जीव तेहे ते ग्रहिया, धुरि सुश्रमण सुश्रावक पछइ, संविग पाखिक त्रीजा अछछं. १८ महात्रत अणुव्रत छांडी बेउ, तीहं टलतु तप बोलई जेउ, बेडी छतां सिलां ते चडई, भवसागर ते निश्चिई पडई. १९
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