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प्रकरण चौबीसों
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शुभ योगों से यदि हिंसा भी होती हो तो सातावेदनीय आदि को का आगमन होता है क्योंकि वीतरागावस्था में भी हिंसा होने का प्रसंग आता है परन्तु उनके योग शुभ होने से असातावदेनीयादि कर्म बन्ध न होकर सात वेदनीय कर्म बन्धता है वह भी स्वल्प काल का, इसका ही नाम अनेकान्तवाद है ।
असुहो जो परिणामो सा हिंसा । यस्मादिह निश्चयनयतो योऽशुभपरिणाम: सा हिंमा ॥
'विशेष वश सूत्र' भावार्थ-मानसिक अशुभ भावना कोही हिंसा कहते और वास्तव यह है भी यथार्थ क्योंकि अशुभ योगों की प्रेरणा ही हिंसा का कारण है।
असुहपरिणामहे उ जीवाबाहो त्ति तो मयं हिंसा । जस्स उ ण सो णिमित्तं संतो वि ण तस्स सा हिंसा
विशेषावश्यक सूत्रं" भावार्थ-आदि जीव हिंसा अशुभ भावना का कारण बनते हों तो हिंसा कही जाती है और अशुभ भावना का कारण नहीं बनता हो तो वह हिंसा हो अहिंसा समझनो चाहिये । जैसे बहता हुआ पानी से साध्वी को निकाल लाना यह देखने में हिंसा है पर अशुभ भावना न होने के कारण वह अहिंसा हा है। 'व्यवस्थितमिदम् प्रमत्त एव हिंसकः नाप्रमत्त इति'
'तत्वार्थ सूत्र टीका आचार्य सिद्धसेन सूरि ।' भावार्थ-प्रमत्तपने हिंसा करे तब ही हिंसा कहा जाती है अप्रमत्तपन को नहीं।
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