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प्रकरण चौबीसों
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वासी अन्न में असंख्य । भले ही त्रसजीव पैदा हो,
जीव पैदा हो जाते हैं। उनकी इन्हें परवाह नहीं । २२-विदल-मचा दही, छास में | कई एक लोग तो अभी, जैन
खाले हुए मूंग, मोठ, कहलाते हुए भी इस पदार्थ चिणा, चौला आदि के को परिभाषिक रूप में नहीं कच्चे या रांधे पदार्थों के जानते हैं । और जो जानते मिश्रित को विद्वल कहते हैं हैं वे भी लोलुपता के उसमें भी असंख्य जीवो. कारण विद्वल खाते हैं और त्पत्ति होती है जिसे वैज्ञा- टालने वालों की उल्टी निंदा निकों ने सिद्ध करके बताया करते हैं। तथा अपना कर्म है। इसे पदार्थ प्रहण बंधन बाँधते हैं।
नहीं करते हैं। २३-प्रायः गरम पानी ठंडा कर | धोवण पीते हैं और उनमें भी के पीते हैं।
कालातिक्रम का ख्याल
नहीं रखते हैं। २४-तपस्या में भी गरम पानी | धोवण तथा छास (घोल) ही पीते हैं।
भी तपस्या में पीलेते हैं। २५-कपड़ा धोते हैं। कई एक तो कपड़ा धोते हैं और
कई एक जूत्रों के शय्यास्तर
(सेजातर) बनते हैं। २६-रात्रि में चूना डाल कर | कई लोग अब गुप्त पानी रखने
पानी रखते हैं और जब लगे हैं। पर कई एक अभी रात्रि में टट्टी या पेशाब | तक भी रात में पानी नहीं
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