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प्रकरण चौबीसवाँ
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९ - बिना संघ भी साधु साध्विएँ | साधु साध्वियें शत्रुञ्जय, गिरनार,
तीर्थयात्रा करने को जाती हैं।
आबू, रानकपुर, सम्मेत शिखर, भद्रेश्वर आदि तीर्थों की यात्रा करते हैं ।
१०-४५ आगम पञ्चाङ्गी और पूर्वाचार्यों के प्रमाणिक सब ग्रन्थ मान्य रखते हैं ।
११ - समाचार पत्रों में अपने नाम से लेख छपवाते हैं । १२ - पुस्तकें छपवाते हैं और उन पर अपना नाम भी लिखते हैं ।
-१३ - आचार्य व साधु इरादा पूर्वक अपना फोटो खिंचवाते हैं ।
१४ - यात्रा समय साथ में रहने वाले श्रावकों के हाथ से जो रसोई बनाई हुई है उससे आहार लेते हैं । -१५ - साधुओं के उपदेश से
संस्थाएँ खोली जाती हैं ।
जैन साहित्य में केवल ३२ सूत्र और उस पर के टब्बे को ही मानते हैं ( इतनी संकीर्ण वृत्ति है ) । अखबारों में अपने नाम से लेख
भ्रमण समय में साथ के गृहस्थ रहते हैं उनकी बनाई हुई रसोई से अपनी गोचरी ले लेते हैं ।
साधुत्रों के नाम से निर्दिष्ट संस्थाएँ स्कूल आदि खुलवाते हैं ।
१६- पुस्तकों के भण्डार रखते हैं । पुस्तक भण्डार रखते हैं ।
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देते हैं। अपने नाम से पुस्तकें प्रकाशित कराते हैं । और अपने फोटू भी देते हैं। पूज्यजी व साधु स्वेच्छया फोटो खिंचवाते हैं ।
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