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________________ प्रकरण चौबीसवाँ १९० ९ - बिना संघ भी साधु साध्विएँ | साधु साध्वियें शत्रुञ्जय, गिरनार, तीर्थयात्रा करने को जाती हैं। आबू, रानकपुर, सम्मेत शिखर, भद्रेश्वर आदि तीर्थों की यात्रा करते हैं । १०-४५ आगम पञ्चाङ्गी और पूर्वाचार्यों के प्रमाणिक सब ग्रन्थ मान्य रखते हैं । ११ - समाचार पत्रों में अपने नाम से लेख छपवाते हैं । १२ - पुस्तकें छपवाते हैं और उन पर अपना नाम भी लिखते हैं । -१३ - आचार्य व साधु इरादा पूर्वक अपना फोटो खिंचवाते हैं । १४ - यात्रा समय साथ में रहने वाले श्रावकों के हाथ से जो रसोई बनाई हुई है उससे आहार लेते हैं । -१५ - साधुओं के उपदेश से संस्थाएँ खोली जाती हैं । जैन साहित्य में केवल ३२ सूत्र और उस पर के टब्बे को ही मानते हैं ( इतनी संकीर्ण वृत्ति है ) । अखबारों में अपने नाम से लेख भ्रमण समय में साथ के गृहस्थ रहते हैं उनकी बनाई हुई रसोई से अपनी गोचरी ले लेते हैं । साधुत्रों के नाम से निर्दिष्ट संस्थाएँ स्कूल आदि खुलवाते हैं । १६- पुस्तकों के भण्डार रखते हैं । पुस्तक भण्डार रखते हैं । Jain Education International देते हैं। अपने नाम से पुस्तकें प्रकाशित कराते हैं । और अपने फोटू भी देते हैं। पूज्यजी व साधु स्वेच्छया फोटो खिंचवाते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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