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________________ १८९ हिंसा अहिंसा की समा० मूर्ति पूजक जैन स्थानक मार्गी जैन १-बड़े २ मन्दिर बनाते हैं पाठ- | आलीशान स्थानक बनाते हैं। शाला, पांजरापोल बनाते हैं। पाठशाला, पांजरापोल बनाते हैं। २-मूर्तिएँ बनाते हैं जिसमें | साधुओं की मूर्तियां या फोटू पृथ्वीकाय का प्रारम्भ को उतराते हैं उसमें पृथ्वीकाय से शुभभावना होने से स्वरूप असंख्यात गुणा अधिक जलहिंसा समझते हैं। काय की हिंसा होती है। ३-मूर्तियों तथा साधुओं के तीर्थङ्करों के, पूज्यों के, और साफोटुओं के ब्लॉक बना के धुओं के फोटो के ब्लॉक बना पुस्तकों में चित्र देते हैं। पुस्तकों में चित्र देते हैं । ४-व्याख्यान के लिए मण्डप भाषणों के लिए मण्डप बनतैयार होते हैं। वाते हैं। ५-दीक्षा का महोत्सव धाम धूम | दीक्षा का महोत्सव ठाठपाट से से होता है। होता है। ६-स्वामि वात्सल्य होता है। | स्वामिवात्सल्य होता है। ७-नारियल आदि की प्रभावना प्रभावना नारियल आदि की होती है। होती है । ८-तार्थयात्रार्थ संघ निकाले पूज्यों के दर्शनार्थ संघ जाते हैं, जाते हैं पर वे शीत उष्ण- विशेषता यह है कि चातुर्मास काल में ही जाते हैं। चार्तु- एवं पर्दूषणों में भी संघ की मास में नहीं जाते हैं। रसोई के भट्टे जलाए जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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