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'प्रकरण चौबीसवाँ
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रहित श्रप्रमादी एवं शुभ भावना वाले जीवों को वैराग्य ( कर्मनिर्जरा ) का कारण होता है ।
इन शास्त्र वाक्यों से प्रत्येक समझदार अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि हिंसा हंसा का मूल कारण शुभाशुभभावना ही हैं जब पूजादि धर्म कार्यों में शुभ भावना है तो वहाँ हिंसा हो ही नहीं सकती है जो देखने मात्र की हिंसा है परन्तु वह कर्म निर्जरा और शुभ कर्मों का हेतु है ।
देववन्दन, गुरुवन्दन, आहार, विहार, निहार तथा गुरु के आगमन समय में सामने जाना, रवाना होते समय पहुँचाने को जाना आदि धर्म कार्यों में शुभ योगों की प्रवृत्ति होने के कारण इन में हिंसा होते हुए भी इसे स्वरूप हिंसा का रूप दे दोषाभाव का कारण बताया गया है ।
इसी प्रकार पूजा, प्रभावना, स्वामिवात्सल्य, दीक्षा महोत्सव, मृत्यु महोत्सव श्रादि धार्मिक कृत्यों के लिए भी समझ लेना चाहिए । और धर्म विधान इन दोनों समुदायों में सदृशतया वर्त्तमान है । तथापि कई एक लोग स्वकीय मत-मोह के कारण आप दयाधर्मी बन दूसरों को हिंसाधर्मी बताते हैं । पर वे प्रत्यक्ष में नहीं आकर या तो लेखों में लिखते हैं या गुप्त रूपेण भोली भाली औरतों के सामने अपनी इस निकृष्ट विद्वत्ता का दिग्दर्शन कराते हैं । इस लिए मैं आज सर्व साधारण के जानने को यहाँ नीचे सम तुलना कर विस्तृत रूप से यह बता देता हूँ कि वास्तव में हिंसा और अहिंसा की मात्रा किस वर्ग में विशेष है ।
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