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प्रकरण पंचवीसवाँ
२००
को अर्थ
(१७) लौंकाशाह ने लींबड़ी जैसे अज्ञातक्षेत्र में कई लोगों शून्य दया दया का उपदेश दिया पर वह बूढ़ा अपंग के कारण लींबड़ी के बाहिर जा नहीं सका ।
(१८) लौंकाशाह ने दीक्षा नहीं ली पर उसका गृहस्थाऽवस्था में ही देहान्त हुआ था । जो हाल दीक्षा की कल्पना की गई है। वह अपने पर गृहस्थ गुरु का आक्षेप मिटाने के लिए की है । (१९) लौंकाशाह ने अहमदाबाद और लींबड़ी के अलावा कहीं भी भ्रमण किया हो ऐसा प्रमाण नहीं मिलता है ।
(२०) लौकाशाह के अनुयायियों की संख्या लौंकाशाह की मौजूदगी में ७ करोड़ जैनों में से सौ पचास मनुष्यों को शायद ही हुई हो।
(२१) लोकाशाह का देहान्त का स्थान निश्चय नहीं है पर अनुमान से लींबड़ी ही प्रतीत होता है ।
(२२) लौंका गच्छ और स्थानकमार्गियों की श्रद्धा, मान्यता एवं आचार व्यवहार में जमीन आसमान सा अन्तर है । अर्थात् स्थानकमार्गी लौंकाशाह के अनुयायी नहीं किन्तु लौं कागच्छीय यति श्रीपूजों से तस्कृत किये हुए यतिलवजी और धर्मसिंहजी के अनुयायी हैं ।
(२३) जैन साधुओं के आचार व्यवहार की आलोचना । (२४) हिंसा और हिंसा का स्वरूप तथा उनकी
समालोचना |
(२५) लौंकाशाह ने क्या किया ?
श्रीमान लोकाशाह ने क्या किया ? इस विषय में हमारे प्रिय मित्र श्रीमान् संतबालजीने 'जैन प्रकाश' पत्र के कई अंको में प्रश्न
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