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प्रकरण पचीसवाँ
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करते थे और धर्म पर पूरा इष्ट रखते थे, पर लौकाशाह ने अज्ञानता के वश हो हिंसा और दया के भेद को सम्यगतया न समझ विचारे भद्रिक जीवों को इष्ट से भ्रष्ट बना मूर्ति पूजा छुड़वाई । यह लौंकाशाह ने पाँचवां काम किया।
(६) जिसमें देव का गुण या देव की आकृति न हो ऐसे लौकिक देवों को नमस्कार नहीं करने की जैनधर्मोपासकों की दृढ़ प्रतिज्ञा थी, पर लौंकाशाह ने संसार खात बतला के अपने अनुयायियों को छूट दी जिससे वे जहाँ मांस, मदिरा चढ़ता है वहाँ जा कर शिर झुका देते हैं। फिर भी उनको जैन मन्दिर मूर्तियों की सेवा करने में पाप समझाया यह लौंकाशाह ने छठ्ठा काम किया।
(७) जैनों में प्रत्येक मास में पर्व है और पर्व के दिन विशेष धम कार्य करना बतलाया है। उसको छुड़ा के मिथ्यात्वी पर्व के लिए छूट देदी जिससे आज जैनों में मिथ्यात्वी पर्व का प्रचार प्रचुरता से देखने में आता है। लौकाशाह ने यह सातवाँ काम किया।
(८) लौंकाशाह और आपके अनुयायी वर्गने सूत्रों का झूठा अर्थ कर जैन मन्दिर मूर्तियों की निन्दा के साथ पूर्वाचार्यों का अवगुणवाद बोलना सिखलाया और विचारे भद्रिक जीवों को दीर्घ संसार के पात्र बनाने का प्रयत्न किया। इतना ही नहीं पर जिनाचार्यों ने राजपूतों को मांस मदरादि का सेवन छुड़वा कर जैन, ओसवाल, पोरवाल, श्रीमाल आदि महाजन बनाए, पर साथ में उन श्रोचार्यों ने मन्दिर मूर्तियों की भी प्रतिष्ठा करवाई। इससे लौकाशाह ने उन आचार्यों का नाम व उपकार भुला कर अपने
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