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प्रकरण बीसा
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मूर्तिपूजकों का तो मानों भारत में नितान्त अभाव ही है ? (क्यों न १) अपने जैनभाइयों का अस्तित्व मिटाने में ही स्थानकमार्गी भाई अपनी उन्नति समम बैठे हैं पर यह इनकी भूल है । अब जरा स्थानकमार्गियों के और मूर्तिपूजकों के वसतिः पत्रकों की ओर तो देखिये ।।
अहमदाबाद में ४०००० जैन, बम्बई में ३०००० जैन, और गोड़वाड़ प्रान्त में तथा सिरोही स्टेट में १००००० जैन हैं । गुजरात प्रान्त में तो प्रायः मूर्तिपूजक जैन ही विशेष हैं । मूर्तिपूजक जैनों के लिए तो ऐसे बहुत से नगर हैं कि जहाँ मुख्य वस्ती जैनियों की है, पर स्थानकमागियों के लिए तो ऐसे थोड़े ही शहर होंगे, कि जहाँ मूर्तिपूजकों की वस्ती न हो। जैन श्वेताम्बरों के आज ४०००० मन्दिर हैं, यदि प्रत्येक मन्दिर के कम से कम १५ उपासक भी माने जाय, तो भी ६००००० छः लाख की संख्या तो सहज ही में मानी जा सकती है। यदि हिसाब लगाया जाय तो चार लाख दिगम्बर, तीन लाख स्थानकमार्गी और तेरहपन्थी तथा शेष छः लाख श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समझे जा सकते हैं। इनमें भी स्थानकमार्गी सौ में नव्वे मनुष्य मन्दिर मूर्ति को मानने वाले, शत्रुजय, केशरियाजी की यात्रा करने वाले हैं, तथा पूर्वाचार्य और उनके द्वारा निर्मित प्रन्थों का सत्कार करनेवाले हैं। पर मूर्तिपूजकों में सौ में ५ पाँच आदमी भी ऐसे नहीं मिलेंगे जो हूँ ढियों के मार्ग को अच्छा समझते हों।
स्थानकमार्गी या तेरहपंथी लोगों ने अपने उपासकों की जो संख्या बताई है, वह सब की सब मूर्तिपूजकाऽऽचार्यों के बनाए
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