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बात तो निर्विवाद सिद्ध है कि कोई भी व्यक्ति जब संसार में जन्म लेता है तो मरता भी अवश्य है ।
य
लिखा भी है:
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प्रकरण - इकवीसवां
लौकाशाह का देहान्त ।
" यज्जायते तत् म्रियते श्रवश्यम्"
इसी सिद्धान्ताऽनुसार श्रीमान् लौंकाशाह भी जन्मे और मरे, परन्तु उनके अनुयायियों की उपेक्षा से आज उनके जन्म मरण की तिथि का कोई भी पता नहीं है । इसके विषय में अर्वाचीन विद्वानों ने यत् किञ्चित् कल्पनाएँ अवश्य की हैं, परन्तु श्रविश्वासनीय तथा इतिहास की कसौटी पर कसने लायक नहीं है । क्योंकि भिन्न २ लेखकों ने जो भिन्न २ कल्पनाएँ इस बारे में की हैं उनसे स्वतः सन्देह प्रकट होता है । तथापि यहां निर्णयार्थं कुछ विवेचन किया जाता हैं ।
श्रीमान् संतबालजी —
"आप लोकाशाह के देहान्त का समय वि० सं० १५३२ का लिखते हैं ।
ध, प्रा. ली. ले. जैन, प्र. ता० १८-८-३५ पृष्ठ ४७५ ।
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