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प्रकरण एकवीसा
१६४ स्था० साधु मणिलालजी- लौकाशाह के देहान्त का समय वि० सं० १५४१ में एवं जयपुर में होना बताते हैं। पर आप लिखते हैं कि आपका देहान्त जहर के प्रयोग से हुआ था।
प्रभुवीर पटावली पृ० १७८ शेष लेखकों ने लौकाशाह के देहान्त के विषय में कुछ भी नहीं लिखा है, अर्थात् मौनव्रत का सेवन किया है।
पूर्वोक्त प्रमाणों में सब से प्राचीन प्रमाण यति भानुचन्द्र का है, तदनुसार लौंकाशाह का देहान्त वि० सं० १५३२ में हुआ होगा। इस मान्यता से स्वामी संतबालजी भी सहमत हैं और वाड़ीलाल मोतीलाल शाह भी इससे मिलते जुलते नजर आते हैं कारण वे १५३१ में लौकाशाह को बिलकुल बूढ़ा और अपंग बताते हैं । स्था० अमोलखर्षिजी लौकाशाह को पन्द्रह दिन का अनशन करना और समाधि पूर्वक शरीर छोड़ना बताते हैं । स्वामी मणिलालजी वि० सं १५४१ जयपुर में जहर के प्रयोग से यति लौकाशाह का देहान्त होना बताते हैं, किन्तु स्वामीजी का यह लिखना बिल्कुल कल्पना मात्र है । कारण न तो लौकाशाह ने यति दीक्षा ली और न वह जयपुर तक आया और न उस समय जयपुर शहर ही आबाद हुआ था । यदि मणिलालजी कम से कम स्वामी अमोलखर्षिजी कृत शास्त्रोद्धार मीमांसा नामक पुस्तक पढ़ लेते तो मालूम हो जाता कि लौं काशाह ने १५ दिन का अनशन किया था। इस हालत में १५ दिन तक तो उन्होंने बिना पाहार किए ही बिता दिये फिर उनको जहर किसने दिया । यदि
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