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प्रकरण बीसवाँ
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है ? परन्तु एक दम से यह कहना कि उसने भारत के चारों ओर -अपना धर्म फैला दिया था, यह तो बिना सिर पैरों की केवल एक गप्प ही है। लोकाशाह ने न तो कुछ उल्लेखनीय कार्य स्वयं किया और न किन्हीं अन्य उपदेशकों के द्वारा करवाया वह तो - साधन रहित साधारण मनुष्य मात्र था ।
लोकाशाह ने असाधन होकर भी वर्ष मास के क्षीण समय में भारत के चारों ओर अपना धर्म फैला दिया, यह बात वही • मनुष्य सच मानेगा जिसने अपनी बुद्धि को बाजार में बेच डाली मुसलमान बादशाहों ने अपनी सैनिक शक्ति तथा राज सत्ता द्वारा है। नहीं तो सोचना चाहिए कि जब सर्व साधन सम्पन्न धर्मान्ध हजारों मन्दिर मूर्तिएँ तोड़ डालीं, सैकड़ों पुस्तक भण्डार जला, इमाम गरम किए, अनेकों श्रयों को अनार्य बनाया, फिर भी वे एक वर्ष भर में यह दुष्कार्य पूरा नहीं कर सके, और इस पशुत्व के प्रयोग में उन्हें एक नहीं अनेकों वर्ष बीत गए, तब कैसे मान -लें कि लौंकाशाह ने असाधनावस्था में भी एक वर्ष में सब कुछ कर दिया। अंग्रेजों के पास इतनी जोरदार वैज्ञानिक शक्ति, प्रभुसत्ता तथा संगठन बल होने पर भी एक वर्ष में ये भी कुछ नहीं कर सके | स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे मूर्त्ति का कट्टर विरोधी साहसी वीर भी एक वर्ष में अपना मत नहीं फैला सके। तो फिर बिचारे लौंका शाह की दुर्बल मृत आत्मा पर इतना बोझा क्यों -लादते हो। यदि लौंकाशाह ने जैन धर्म में फूट का बीजाऽऽरोपण किया, उसी के उपलक्ष्य में यदि सब लिखा जाता है तब तो स्वामी भीखमजी को भी कुछ न कुछ बढाना चाहिए, क्योंकि यह विषवल्लि तो उन्होंने भी बोई थी ।
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