________________
५९
क्या लौ० ३२ सूत्र लिखे थे
की आज्ञा बिना तस्कर वृत्ति से लिखे थे, और इस प्रकार यतियों की चोरी की थी,आप की इस वृत्ति का अनुकरण आज भी आप के अनुयायियों में पूर्ववत् ही विद्यमान है, और सैकड़ों ग्रंथों से मंथकर्ताओं के मूल पाठ निकाल कर अपने नाम से नये पाठ बना कर रखने के अनेकों उदाहरण विद्यमान हैं।
यह लोकोक्ति बिलकुल ठीक है कि झूठ बोलने वाले और जमीन पर सोने वाले के कोई मर्यादा नहीं होती है। जब स्थानक मार्गियों के लेखों से लौकाशाह पर चोरी करने का आक्षेप आता है, तब उसका निवारण करने को स्था० साधु अमोलखर्षिजी अपने "शास्त्रोंद्वारामीमांसा" नाम के अंथ में लिखते हैं:
"लोकाशाह साधु दर्शन का प्रेमी होने से एक दिन प्रातः काल यतियों के दर्शनार्थ उनके उपाश्रय में आया, x x x यतिजी ने एक सूत्र लिखने को दिया । लौकाशाह ने उसकी दो प्रतिलिपि लिख कर यतिजी को दी और कहा कि एक प्रति आपके लिये और एक प्रति मेरे लिए मैंने लिखी है, यह सुन सरल स्वभावी और ज्ञान प्रचार के बड़े प्रेमी यतिजी ने खुश होकर कहा कि आप भी इसे पढ़ना, x x x इस तरह से करके लौकाशाह ने बत्तीस सूत्रों की भी दो दो प्रतिलिपिएँ की। x x x आगे आप लिखते हैं कि नन्दी सूत्र में ७२ सूत्रों के नाम है पर ३२ सूत्रों के अलावा ४० सूत्र विच्छिन्न होगए ह ।।
"शास्त्रोद्धार मीमांसा पृष्ट ५७"
Jain Education International
al
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org