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प्रकरण चौदहवां लौकाशाह और मूर्तिपूजा काशाह जिस समय अहमदाबाद के श्रीसंघ द्वारा
अपमानित हुश्रा था उस समय गुस्सा-श्रावेश में श्राकर जैन श्रमण, जैनागम, सामायिक पौसद प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और दान का निषेध किया था, इसी भांति मति पूजा का भी इन्कार कर दिया था। बात भी ठीक है, क्रोध में मनुष्य बेभान एवं अन्धा बन जाता हैं। आवेश में इन्सान हिताहित एवं कृत्याकृत्य का खयाल भूल जाता हैं। जैसे जमाली गोसालादि ने स्वयं अल्पज्ञ होने पर भी सर्वज्ञता का नाद फूका । इतना ही नहीं पर भगवान पर भी उन्होंने अपना रोष प्रगट किया । ऐसे अनेक उदाहरण विद्यमान हैं, इसी प्रकार लौकाशाह जैन यतियों, जैन मंदिर उपाश्रय और जैन श्रीसंघ से खिलाफ हो पूर्वोक्त बातों का विरोध किया हो तो यह असंभव नहीं है, लौकाशाह के समकालीन लेखकों के लेखों से भी यह बात परिपुष्ट होती है। ____ जब मनुष्य को क्रोध से थोडी बहुत शान्ति मिलती है, तब वह विचार करता है कि मैंने आवेश में आकर अमुक कार्य किया वह अच्छा किया, या बुरा ? इतना भान होने पर बुरा काम का पश्चाताप अवश्य होता है । इसी भांति श्रीमान् लौंकाशाह जब थोड़ा बहुत शान्त हुआ तो उन्होंने अपने अकृत्य पर
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