________________
प्रकरण सोलहवाँ
१३०
लोकाशाह की विद्यमानता में ही कडुश्राशाह हुआ, वह चाहे धुरन्धर विद्वान हो या न हो, पर अपने मत के नियम और सिद्धांत तो वह भी बना गया, जो श्राज उपलब्ध हैं । फिर लोकाशाह ने ही ऐसी चुपकी क्यों साधी थी ? खैर ! जाने दीजिए । लौंकाशाह के जीवन वृत्त का मुख्याऽधार वाड़ी मोती शाह कृत ऐतिहासिक नोंध है, और उसमें लिखा है कि लौकाशाह के विषय में हम कुछ नहीं जानते हैं, तथा यही बात स्वामी मणिलालजी भी दुहराते हैं, फिर न मालूम, संतबालजी किस आधार से यह लिखते हैं कि लौंकाशाह बड़ा भारी विद्वान् था । क्या संत बालजी अपने दूसरे महाव्रत को इस प्रकार बचा सकेंगे ?
जमाना सत्यवाद एवं प्रमाणवाद का है । लेख लिखने के पूर्व लेख की सत्यता के लिए प्रमाण ढूंढने की जरूरत है । केवल कागजी घोड़े दौड़ाने से कोई सफलता नहीं मिल सकती । हम तो आज भी चाहते हैं कि हमारे स्थानकमार्गी भाई इस विषय
प्रमाण जनता के सामने रख अपने लेख की सत्यता सिद्ध करें । लौकाशाह केवल स्थानकमार्गियों की ही सम्पत्ति नहीं पर वे जैनाचार्य द्वारा बनाया हुआ एक जैन श्रावक थे । अतः लौंकाशाह विद्वान् हो तो जैन समाज को अप्रसन्नता नहीं किन्तु गौरव है । परन्तु प्रमाण शून्य कल्पित लेखों द्वारा हम लौंकाशाह की हँसी उड़ाना नहीं चाहते हैं ।
श्रीमान् लौंकाशाह के समकालीन तथा सम सिद्धान्ती महात्मा कबीर, नानक शाह, रामचरण, कडु श्राशाह, तारण स्वामी आदि बहुत हुए, इनका साहित्य आज विद्यमान हैं, इतना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org