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प्रकरण बीसवां
लौकाशाह के अनुयायियों की संख्या किसी भी धर्म का प्रचार, उस धर्म की सत्यता तथा
प्रधानतः धर्म प्रचार के साधनों पर अवलम्बित है, और इन प्रचार के साधनों में प्रधान साधन उपदेशक,
और तद्रचित सुन्दर साहित्य हैं । हमारे लौकाशाह के पास उनकी विद्यमानता में इन दोनों साधनों का पूर्णतया अभाव था। श्रीमान् संतबालजी और वाड़ीलाल मोतीलाल शाह के मताऽनुसार वि० सं० १५३१ में तो लौकाशाह धर्म-प्राण हुए, और तब भाप अतिवृद्ध तथा पादहीन थे फिर वि० सं० १५३२ में ही
आपका देहान्त हो गया। इस हालत में तब तक तो उनके अनुयायियों की संख्या नहीं के बराबर ही थी, यदि कुछ होगी भी तो सौ पचास से ज्यादा नहीं; किन्तु आधुनिक स्थानकमार्गियों के सिवाय न तो किसी प्राचीन लेखक ने लौकाशाह के अनुयायी संख्या की बात लिखी है और न इस विषय का कोई अन्य प्रमाण ही मिलता है। लौकाशाह की मौजूदगी में तो सिवाय काठियावाड़ विशेष लीबड़ी के इन्हें कोई जानता तक भी नहीं था । लौकाशाह के जीतेजी कडुमाशाह नामक एक अन्य व्यक्ति ने अपने नाम से कडुअामत निकाला था, उसने वि० सं० १५२४ से १५६४ तक लगातार अनेक स्थानों में घूम कर अपने मत को बढ़ाया, जिसके प्रमाण तो मिलते हैं। पर लोकाशाह सम्बन्धी कोई भी
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