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शाह पोते पण दीक्षित थया हता. अने तेथीज तेमनो अनुयायी वर्ग लौकामत तरीके पाछलथी ओलखायो ? परन्तु बात बहु प्रतिष्ठा पात्र जगाती नथी । आ वखते लौकाशाहनी वय खूबज वृद्ध थई गई हती । अने ४५ दीक्षा थया पछी टुंकज बखत मां तेमनो देहान्त थयो छे । श्रेटले तेभोनी त्याग दशा उत्कृष्ट होवा छतां, गृहस्थ छतां पण सन्यास वा रह्या, दीक्षा लई सक्या नथी XXX'
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धर्म ० ० प्रा० लौ० ले० जैन प्र० ता० १८-८-३५ पृष्ट ४७५
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प्रकरण अट्ठारहव
स्था० साधु विनयर्षिजी
समये मोटी
" श्रीमान् धर्मप्राण लौकाशाहनी उमर इती, ते गृहस्थ वासमां साधु जीवन गालता बंबई समाचार ४-४-३६ के लेख से ।"
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इनके अलावा श्राचार्य विजयानन्द सूरि, दि० रत्नानन्दी, सुमतिकीर्ति, सारण स्वामी, लोकायति, भानुचन्दजी स्था० साधु जेठमलजी आदि लेखकों का भी यहीमत है कि श्रीमान् लोकाशाह ने दीक्षा नहीं ली, पर वे अपनी तमाम जिन्दगी भर गृहस्थाSवस्था में हो रहे । पं० मुनि लावण्यसमय और उपा० कमल संयम तथा मुनि वीकाका और ऋषिकेशवजी का भी यही मत है कि काशाह गृहस्थ ही रहा था ।
जब वि० सं० १५४३ से आज पर्यन्त के लेखकों का एक
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