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प्रकरण-अट्ठारहवाँ क्या लौंकाशाह ने यति दीक्षा ली थी ? लोकाशाह के जीवन संबंधी यत्किञ्चित् वर्णन जिन
जिन लेखकों ने लिखा है उन सब के लेखों से एक मात्र यही ध्वनि निकलती है कि लौकाशाह गृहस्थ था और गृहस्थदशा में ही उसने अपनी इह लीला संवरण की। श्राज स्था० समाज का विशेष विश्वास वा० मो० शाह की ऐतिहासिक नोंध पर है। इसलिए पहिले उसी का प्रमाण देना उचित है कि उसमें इस विषय में क्या लिखा है। वाड़ी० मो० स्वयं लौकाशाह के मुख से कहलाते हैं कि:
" में इस समय बिलकुल बूढा और अपंग हूँ, ऐसे शरीर से साधु की कठिन क्रियाओं का साधन होना अशक्य है। मेरे जैसा मनुष्य दीक्षा लेकर जितना उपकार कर सके उससे ज्यादा उपकार संसार में रहकर कर सकता है।"
ऐतिहा० नोंध पृ० ७४-५ ।
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श्रीमान् साधु संतबालजी स्था०
"लोकाशाह खुद गृहस्थ पणां मां रह्या अने ४५ मनुष्यों ने दीक्षा लेवानी अनुमति प्रापी xxx इसके आगे आप फुटनोट में लिखते हैं किः
"कई कई स्थले अवो पण उल्लेख मले छ के लौका
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