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प्रकरण - सत्रहवां
क्या लोकाशाहने किसी को धर्मोपदेश दिया था ?
लौं काशा
काशाह को विद्वत्ता का परिचय तो हम पिछले प्रकरण में दे श्राए हैं। अब यह बताते हैं कि लौकाशाह ने भी कभी किसी को उपदेश दिया था वा नहीं । इसके विषय में खुलासा यह है कि लौकाशाह के समय में जैन श्रागामों का न तो गुर्जरगिरा में अनुवाद हुआ था और न उन पर भाषा टीका हुई थी। मूल जैनाऽऽगम अर्धमागधी में थे और उनकी टीका देववाणी ( संस्कृत ) में थी । लौंकाशाह को इन दोनों भाषाओं का तनिक भी ज्ञान नहीं था । तथापि कई एक सज्जन मतदुराग्रह के वश हो यह प्रायः कहा करते हैं कि लौंकाशाह ने लाखों मनुष्यों को उपदेश किया था । ऐसा लिखने वालों में सर्व प्रथम नंबर वा० मो० शाह का है । आप अपनी ऐतिहासिक नोंध के पृष्ठ ६५ पर लिखते हैं कि लौकाशाह ने अपनी बुलन्द आवाज को भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचा दिया था । पृष्ठ ६८ पर आप लिखते हैं कि एकदा पाटण निवासी लखमस्री लौंकाशाह के पास श्राया, लौकाशाह ने उसको ऐसा मार्मिक उपदेश दिया कि वह तत्क्षण लौकाशाह का पक्का अनुयायी बन गया । इसके आगे आप अपनी नोंध के पृष्ठ ६९ में लिखते हैं कि सूरत, पाटण, अरहटवाड़ा इत्यादि चार गाँवों के संघ अहमदाबाद में आए। संघ के लोग लौंकाशाह का उपदेश
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