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उपाश्रयान गामों में बत्तयों साम्प्रता
गई हैं
प्रकरण चौदहा कर वीतराग की मर्तियों की प्रतिष्ठा करवा के द्रव्य भाव से पूजा तफ करने लग गये। इतना ही क्यों लौकागच्छ के प्राचार्यों ने कई मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्टा भी करवाई वे मन्दिरमूर्तियों
और उन पर अंकित * शिलालेख आज भी विद्यमान हैं । जहां जहां लुकागच्छ के उपाश्रय हैं, वहां जैन देरासर मूर्तियों साम्प्रत समय भी विद्यमान हैं। जिन जिन गामों में लौकागच्छ के साधु नहीं रहे वहाँ के उपाश्रय की मूर्तियों नगर के मन्दिरों में पधराई गई हैं फिर भी बीकानेर जोधपुर फलोदी सादड़ी मजल मेवाड़ मालवा गुजरात काठियावाड़ पंजाब सी. पी. बरारादि प्रदेश में लौकागच्छ के उपाश्रयों में तोर्थङ्करों की मूर्तियां श्राज भी पूजी जारही है, और उन लौंकागच्छोय पुजारों की संख्या भी हजारों घरों की हैं। वे लौकागच्छ के कहलाते हुए भी मूर्तिपूजक हैं । उनकी गणना भी मूर्तिपूजकों में की जाती है। अतएव दोनों समुदायों में फिर से शान्ति हुई जो मूर्तिपूजा मानना और नहीं मानने का भेद भाव मिट कर उभय समाज मूर्ति के उपासक बन गये। जब मूर्ति विषय दोनों समुदाय की मान्यता एक होगई तो जैनागम और नियुक्ति टीकादि पांचांगी मानने में भी किसी प्रकारका मतभेद नहीं रहा इसी कारण लौकागच्छीय कई विद्वानों ने छोटे बड़े +प्रन्थों का भी निर्माण किया उसमें
*बाबू पूर्णचंद्रजी नाहर संपादित शिलालेख प्रथम खण्ड लेखांक लौकागच्छ के आचार्यों ने मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई के लेख है।
+ विजयगच्छीय यति केशवरायजी कृत रामायण तथा लौकाराष्ट्रीय गणि रामचंद्र तथा आपके शिष्य नानकचन्द कृत ग्रन्थों को देखो।
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