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काशाह और मुंहपती
लवजी ने डोराडाल मुँहपर मुँहपत्ती बान्धली और हम उनकी परम्परा में होने से मुँहपत्ती मुँहपर बान्धते हैं ।
इस बीसवीं शताब्दी के लेखक श्रीमान बाड़ीलाल मोतीलालशाह ने अपनी ऐतिहासिक नोंध में लौकाशाह का लम्बा चौड़ा अतिशय युक्ति पूर्ण जीवन लिखा है पर आपने लौंकाशाह को मुँहपर दिन भर मुँहपत्ती बान्धने वाला नहीं बतलाया है और स्वामि मणिलालजी ने जैन धर्मनो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास नाम की किताब में भी लोक शाह ने मुँहपर मुँहपत्ती बान्धी हो ऐसा कहीं भी उल्लेख नहीं किया है इतना ही क्यों आपने तो लोकाशाह को तपागच्छीय यति सुमति विजय के पास यति दीक्षा लेना भी लिखा है इससे भी निश्चित होता है कि लौंकाशाह मुहपसी हाथ में ही रखता था ।
अब आगे चल कर नये विद्वान् श्रीमान् संतबालजी इस विषय में क्या फरमाते हैं । आपने हाल ही में " धर्मप्राण लौंकाशाह" नाम की लम्बी चौड़ी लेखमाला 'जैनप्रकाश' नामक पत्र में प्रकाशित करवाई। उस लेखनाला में कहीं पर भी लौकाशाह मुँह पर मुँहपत्ती बान्धने का थोड़ा भी उल्लेख नहीं किया इतना हो नहीं बल्कि आपने तो बड़ा ही जोर देकर सिद्ध किया है कि लौकाशाह ने दीक्षा नहीं ली पर गृहस्थावस्था में ही देहान्त हुआ। मुँहपती में डोरा डाल कर दिन भर मुँह पर बान्धने के बारे में आपने निडर होकर फरमाया किः
"मुख बन्धन श्री लाकाशाह ना समय थी सरू थयेल नथी परन्तु त्यार बाद थयेला स्वामिलवजी ना समय थी सरू
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