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क्या० लौं० ३२ सूत्र लिखे थे
अब एक ओर तो हमारे अमोलखर्षिजी लिखते हैं कि ३२ सूत्रों के अलावा सब सूत्रों का विच्छेद हो गया, और दूसरी ओर लौंकाशाह के जन्म के पहिले के भी अनेक सूत्र हस्त लिखित मिलते हैं, यह परस्पर विरोधोक्ति न जाने क्या जान कर लिखी गई है ? ! हम इनसे यह पूछना चाहते हैं कि जब लौंकाशाह ने ३२ सूत्रों की २-२ नकलें लिखीं तो मात्र ६४ नकलें तो सूत्रों की ही हो गई, और विश्वास है ये बृहद कार्य ग्रंथ हजारों पृष्ठों में समाप्त हुए होंगे पर आज बारोकी से ढूंढने पर भी कहीं लौकाशाह के हस्ताक्षरों से भूषित एक पन्ना भी उपलब्ध नहीं होता है ऐसी हालत में इस बीसवीं सदी के शोध युग में यह क्यों कर विश्वास हो सकता है कि लौंकाशाह ने भी कभी ३२ सूत्रों की नकलें की थी ? । सत्य बात तो यह है कि लौंकाशाह ने ३२ सूत्र तो क्या एक भी सूत्र नहीं लिखा, इनके अनुयायी जो झूठी गप्पे हॉकते हैं वह केवल लौकाशाह की महत्ता बताने के लिए ही।
अब यदि कोई यह प्रश्न करें कि जब लौकाशाह ने ३२ सूत्र नहीं लिखे तो उनके अनुयायियों में फिर इन ३२ सूत्रों की मान्यता क्यों ?। इसके प्रत्युत्तर में यही लिखना पर्याप्त है कि न तो लौंका मताऽनुयायी ३२ सूत्रों की नियुक्ति टीका मानते हैं और न भाष्य चूर्णिका, किन्तु ३२ सूत्रों पर किए हुए गुर्जर भाषा मय टब्बा को ही ये मान्य मानते हैं और ३२ सूत्रों पर सर्व प्रथम टब्बा श्री पावचंद सूरि ने वि० सं० १५६० के आस पास किया था। एवं इस समय से पहिले ही अर्थात् वि० सं० १५३२ में लौकाशाह का देहान्त हो चुका था, अतः
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