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प्रकरण - तेरहवां
लौकाशाह का सिद्धान्त
कोई
भी नया मत जब सर्व प्रथम शुरू होता है, तब उसके मूल सिद्धान्त भी साथ ही में निश्चित हो जाते हैं। जैसे दिगम्बर सम्प्रदाय का मुख्य सिद्धान्त है कि साधु नम रहें, कडुआमत का सिद्धान्त है कि इस समय कोई सबा साधु हो नहीं है । गुलाबपंथ का सिद्धान्त है कि स्त्रियों को सामायिक, पौषद न हो सके। भीखमजी का सिद्धान्त है कि मरते जीव को बचाने में अट्ठारह पाप लगते हैं, इत्यादि । पर लौकाशाह ने जिस समय अपना अलग मत निकाला उस समय उनका क्या सिद्धान्त था ? यह मालूम नहीं होता । क्योंकि न तो लौकाशाह के हाथ का कोई उल्लेख मिलता है और न लौंकाशाह के समकालीन या श्रास पास के समय वर्ती उनके अनुयायियों का लिखा ही कोई प्रमाण मिलता है। फिर भी लोकाशाह के नाम पर आज दो समुदाय विद्यमान हैं । ( १ ) तो लौकागच्छ ( २ ) रा स्थानकमार्गी. इन दोनों दलों में इस समय इतना विरोध है कि, लौकागच्छीय यति न तो मुंह पर मुँहपत्ती बाँधते हैं, और न मूर्त्ति पूजन को इन्कार करते हैं, किंतु इससे विरुद्ध स्थानक मार्गी दिन भर मुँह पर डोरा डाल मुँह पत्ती बाँधते हैं और मूर्ति पूजन का भीषण विरोध करते हैं। इस हालत में लोकाशाह के सच्चे अनुयायी कौन हैं ? यह निर्णय करना कठिन
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