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प्रकरण बारहवाँ
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उसे निज तथा परके हिताहित का जरा भी विचार नहीं रहता है। फिर इनको तो उस समय ऐसे अनेक कारण भी उपलब्ध होगये थे जैसे:-भस्मग्रह की अन्तिम फटकार, उधर श्रीसंघ की राशि पर धूम्रकेतु नामक ग्रह का आना और इधर असंयति पूजा नामक अच्छेरा का बुरा प्रभाव पड़ना, एक तरफ लौकाशाह का आकस्मिक अपमान होना, दूसरी तरफ उसे तत्काल ही सैयद का संयोग मिलना । इन सब कारणों के एक जगह मिल जाने पर ही लौंकाशाह ने यह उत्पात मचाया और उसमें भांशिक सफलता हासिल की। जैन शासन में असंयमी गृहस्थ का निकाला हुश्रा यही सबसे पहिला मत है, और यही "असं. यति पूजा अच्छेरा" नाम से कहा जाता है। इस प्रकार यह विवेचन अब यहीं समाप्त होजाता है, तथा इसके अगले प्रकरण में “लौंकाशाह का सिद्धान्त क्या था ?" इस पर लिखा जायगा पाठक उसे भी भ्यान से पढ़ने की कृपा करें ।
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