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लौं० नयामत. कारण
आ निकला, लौकाशाह को पूछा क्या साह लौका तेरी कपाल पर क्या है ? लौकाशाह ने कहा मन्दिर का स्तम्भा (तिलक) इस पर शैयद ने लौकाशाह को नास्तिकता का उपदेश दिया और लौकाशाह की बुद्धि में विकार हुश्रा । बाद उसने शैयद की संगति से जैन-धर्म की सब क्रियाओं का नास्तिपना (लोप ) कर अपना नया मत निकाला ।
वीर वंशावली गुजराती का सार जैन० सा० सं० वर्ष ३-३-४९
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उ० कमल संयमजी (वि० सं० १५४४) "अहवई हूऊ पीरोज्जिखान, तेहनई पातशाह दई मान । पाडई देहरा अने पोसाल, जिनमत पीडेई दु:खम काल । लुका नई ते मिलियु संयोग, ताव माहि जिम सीसक रोग।
उ० कमल संयम चौपाई वि० सं० १५४४
उपर्युक्त घटनाएँ यद्यपि भिन्न भिन्न प्रकार से लिखी गई हैं तद्यपि, इन सबका निष्कर्ष यही निकल सकता है कि लौंकाशाह का यतियों द्वारा अपमान हुआ, और यवन का संयोग मिलने से तथा अनार्य संस्कृति के दूषित प्रभाव से प्रभावित हो जैन धर्म के विरुद्ध उसने अपना नया मत अलग खड़ा किया। लौकाशाह के इस कुकृत्य की अपूर्ण सफलता में हमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं। कारण साधारण मनुष्य किसी आवेश में आकर कर्तव्या 5 कर्तव्य के विषय में अन्धा बन जाता है, उस समय
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