________________
१०५
लौकाशाह का सिद्धान्त वर्षों बाद यति लवजी ने बाँधी थी, और उसी का उल्लेख लिखा हुआ यत्र तत्र मिलता है।
लौकाशाह पर तो अनार्य यवन का ही प्रभाव पड़ा, और फल रूप लौकाशाह ने जैन धर्म के अंग रूप समप्र धर्म क्रियाओं का निषेध कर दिया तो मुँहपत्ती मुँह पर बांधने की आफत लौंकाशाह क्यों मोल खरीद करे वह तो धर्म क्रियाओं से भी पृथक था इस अस्मदुक्त बात को परिपुष्ट करने वाला एक और सबल प्रमाण लोकाशाह के समकालीन कडुाशाह नामक गृहस्थ का मिलता है । इसने भी अपने नाम से नया कडुपामत निकाला था जैसे लौकाशाह ने अपने नाम से लौकामत निकाला। . लौंकाशाह
कडुपाशाह जन्म वि० सं० १४८२ जन्म वि० सं० १४९५ मत वि० सं० १५०८ मत वि० सं० १५२४ देहान्त वि० सं० १५३२ देहान्त वि० सं० १५६४ अथवा मु० म० १५४१ ___ इस वर्षावली से यह स्पष्ट पाया जाता है कि लौंकाशाह और कडुअाशाह ये दोनों समकालीन गृहस्थ थे, और जैन यतियों से अपमानित हो अपने नाम से नये मत निकालने वाले थे, जब लौकाशाह ने सामायिकादि सभी क्रियाओं का निषेध किया तब कडुअाशाह ने अपने नियमों में यह भी एक नियम रक्खा कि सामायिक बहुधा, एक दिन में बहुत वार करना, पौषह पर्व के अलावा प्रत्येक दिन करना, इत्यादि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org