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प्रकरण तेरहवाँ
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aritain ! यतियों को दान दो ! जाओ हम नहीं मानते दान को ।
चलो लौकाशाह ! पूजा तो करो । जाओ हम नहीं मानते पूजा को ।
चलो लौंकाशाह ! यतिवन्दन तो करो ? जानो हम नहीं मानते यतियों को ।
शाह ! ये सब बातें सूत्रों में लिखी है ? जाओ हम नहीं मानते सूत्रों को ।
इस तरह से या प्रकारा ऽन्तर से लौंकाशाह ने पूर्वोक्क धर्म क्रियाओं का इन्कार तो अवश्य किया होगा, जभी तो आपके समकालीन विद्वानों ने अपने प्रन्थों में इस बात का उल्लेख किया है । यदि लौंकाशाह के बाद १०० या २०० वर्षों में ये ग्रन्थ लिखे गए होते तो, उन पर इतना विश्वास नहीं होता जैसे स्वामी भीषमजी ने दया दान की उत्थापना की वैसे ही उस समय के ग्रन्थों में भी दया दान के विषय का उल्लेख मिलता है । पर यह कहीं नहीं कहा गया कि भीषम जी ने भगवान् महावीर को भी "चूका” कहा था कारण यह बात उनके बाद की है । इसी भाँति लकाशाह के समय भी पूर्वोक्त बातों का ही निषेध हुआ था, और उन्हीं का उल्लेख तात्कालीन प्रन्थों में मिलता है नकि डोरा डाल मुँह पर मुँहपत्ती बांधने की विधि का प्रयोग लोकाशाह के समवर्ती समय का मिलता है। क्योंकि लोकाशाह तो मुंहपत्ती बाँधते नहीं थे, मुँहपत्ती तो उनके प्रायः दो सौ
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