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प्रकरण बारहवाँ
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श्रावकों श्रागल आवी श्रीमान् ने बल जबरी थी उपासरानी बहार कहडवानो प्रयत्न करवा लाग्या, अटले लौकाशाह स्वयं (पोत ) तरतज उपाश्रयनी बहार निकली गया x x
प्रभुधीर पटावली पृष्ठ १७० स्वामी मणिलालजी अपने धर्म स्थापक गुरु लौकाशाह के लिए यदि कुछ सफाई से लिखे, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं, पर यह बात छिपी नहीं रह सकती है कि अहमदाबाद श्री संघ की
ओर से लौकाशाह का अपमान अवश्य हुआ था । अर्थात् लौकाशाह को बल जबरी से उपाश्रय के बाहिर निकाल दिया था । बस यही कारण था कि लौंकाशाह नया मत निकालता ।
x x x लौकाशाह यतियों के उपाश्रय, लिखाई का काम करता था, उसकी मजदूरी के पैसे श्रावक लोग ज्ञान खातों में से दिया करते थे। एक बार एक पुस्तक की लिखाई दे देने पर केवल साढ़े सत्तर दोकड़े' देने शेष रह गए, और इसीलिए लौंकाशाह और श्रावकों के बीच आपस में तकरार हो गई । लौकाशाह यतियों के पास आया । यतियों ने कहालुंका ! हम तो पैसे रखते नहीं हैं, तुम श्रावकों से अपना हिसाब ले लो। यह सुन लौंका को गुस्सा आया और यह साधुओं की निन्दा करता हुश्रा बाजार में एक हाट पर आकर बैठ गया। इधर एक मुसलमान लिखारा जो मुसलमानों की पुस्तकें लिखता था और लौंकाशाह का मित्र था, वह
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