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प्रकरण ग्यारहवां
लौंकाशाह और भस्मग्रह ।
श्रीक
* कल्पसूत्र में यह उल्लेख है कि भगवान् महावीर के निर्वाण के समय में आपकी राशि पर "भस्म" नाम के क्रूर ग्रह का आक्रमण हुआ, जिसका फल यह बताया है कि भगवान् महावीर के बाद २००० वर्षों तक "श्रमण संघ" की उदय, उदय पूजा न होगी, वे २००० वर्ष वि० सं० १५३० में पूरे होते हैं, तब वि० सं० १५०८ में लौंकाशाह और वि० सं० १५२४ में कडुआाशाह ने जैन धर्म में उत्पात मचाया । और इन दोनों गृहस्थों के अनुयायी कहते हैं कि हमारे धर्म-स्थापकों ने धर्म का उद्योत किया । अब सर्व प्रथम तो यह सोचना चाहिए कि भस्म ग्रह के कारण उदय उदय पूजा का न होना “श्रमण संघ" के लिए लिखा है, तब कडुआ शाह और लौंकाशाह तो गृहस्थ थे, इनके और भस्मग्रह के क्या सम्बन्ध है कि ये भस्मग्रह के उतरने के पूर्व ही धर्म का उद्योत कर सकें । परन्तु वास्तव में यह उद्योत नहीं था किंतु उतरते हुए भस्मग्रह की अन्तिम क्रूरता का प्रभाव था जो इन गृहस्थों पर वह डालता गया । क्योंकि जैसे दीपक अपने अंत काल में अपना चरम प्रकाश दिखा जाता है, वैसे ही भस्मग्रह भी जाता जाता एक फटकार दिखा गया । इधर तो भस्मग्रह का जानो हुआ और उधर श्रीसंघ की राशी परधूम्र केतु नामक महा विकराल
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