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लौं० और भस्मप्रह आप तो इनके रचे हुए समवसरण में जाकर विराजमान होगये हो ? अतः आप स्वयं इस प्रारम्भ का अनुमोदन करते हो । तथा धर्म के नाम पर इतनी भीषण हिंसा करने वालों का, आप स्वयं होंसला बढ़ाते हो । प्रभो ! क्या-आप यह भूलगये हैं कि भविष्य में कलियुगी लोग इसी का अनुकरण कर, आपका उदाहरण दे बिचारे हम जैसे केवल दयाधर्मियों ( ढोंगियों) को बोलने नहीं देंगे।
अरे! दयासिन्धो! आपके प्रत्यक्ष में ये इन्द्रादि देव भक्ति में बेसुध होकर चारों ओर चवरों के फटकार लगा रहे हैं, जिन से असंख्य वायुकाय के जीवों को विराधना होती है, फिर भी आप इन्हें कुछ नहीं कहते हैं, यह बड़े आश्चर्या की बात है। हाय ! यह कौनसा धर्म ? यह कैसी भक्ति ? कि जिसमें जीवों की अपरिमित हिंसा हो।
हे प्रभो! आपको इन लोगों ने मेरु पर ले जाकर एक दम कच्चे पानी से आपका स्नान कराया, पर उसे तो हम आपके जन्म-गृहस्थापना से संबोधित कर अपना बचाव कर सकते हैं। पर आपकी कैवल्याऽवस्था और निर्वाण दशा में भी ये लोग भक्ति और धर्म का नाम ले लेकर इतनी हिंसा करते हैं, उसे आप भले ही सहलें पर हम से तो यह अत्याचार देखा नहीं जाता। यद्यपि ये लोग चाहे प्रवृत्ति अपञ्चरखखानी हो, पर श्राप तो साक्षात् अहिंसा धर्म के अवतार हो, आपकी मौजूदगी में यह इतना अन्याय क्यों ? ये लोग आपके लिये ही बाजा गाजा (दुंदुभी ) बजाते हैं। आपके अवान की साथ में भी वाजा के सुर देते हैं पर भी आप बड़ीशान से मालकोश वगेरह राग
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